systemhalted by Palak Mathur

फिर चमकेगा सूर्य स्वछन्द नीले गगन मे

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समय की धरा पर हूँ मैं यूं चल रहा,जिस तरह पंछी उड़ रहे गगन में, विचारों का समूह है यूं उमड़ रहा, जिस तरह बादल गरज रहे आसमान मे |

आते हैं विचार अक्सर उन्मुक्त स्वप्न में,खो जाते हैं बरबस हम अपनी लगन में, ले आयेंगे नव भोर हम रात्री प्रहार मे, फिर चमकेगा सूर्य स्वछन्द नीले गगन मे ||

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