systemhalted by Palak Mathur

जिंदगी क्या चीज़ होती है?

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  रात थी, बारह बज रहे थे, सिर्फ अँधियारा था चारों ओर,
  मैं सोच रह था कि ज़िंदगी क्या चीज़ होती है?
  इंसान होती है या भगवान् होती है??

  कि तभी दरवाज़े पर हुई एक हल्की सी खटक,
  जिसे सुन मेरी साँसे गयीं अटक!!
  मैंने पूछा कौन है??

  यकायक ही एक आवाज़ गूंजी – मौन है!!

  मैंने पूछा क्या करने आये हो?
  आवाज़ आई, ज़िंदगी क्या है जानना चाहे हो???
  मेरे मुहँ से निकला एक स्वर,
  पता नहीं, हाँ था, ना था,
  या थीं सिर्फ आहें,
  पर जानने कि चाह थी जीवन का अभिप्रये!!

  मौन बोला, "ज़िंदगी क्या है, कभी जानने किकोशिश न करना,
  जितना समझा है, उसका गुणगान कभी न करना,
  वरना ज़िंदगी के सवालों में घूम जाओगे,
  करना चाहोगे कुछ,कुछ और कर जाओगे!!

  यह कहकर मौन न जाने कहाँ खो गया,
  मैं जहाँ बैठा था वहीं सो गया,
  अगले दिन जब आँख खुली तो बस यही सवाल था,
  ज़िंदगी क्या चीज़ होती है?
  इंसान होती है या भगवान् होती है??
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