तन्हाई
17 Mar 2002 Share on:
चारों और के अंधियारे में
जब मैं छत पर बैठा था अकेला,
दूर तक निहारने कि कोशिश कर रहा था ,
तभी मुझे लगा मेरी आत्मा मुझसे अलग हो
मेरे पास आ बैठी है ,
मेरी तन्हाई में अपने को शामिल करने ,
और शायद कुछ कहने !
जैसे ही वह हुई कुछ कहने ,
कहीं दूर किसी ने एक दीप जला दिया ,
यह सोच कि सुबह के सूरज कि
पहली किरण आ पड़ी है ,
वह मेरे भीतर समां गयी ,
मुझको वहीं छोड़ ,
मेरी तन्हाई में !!