systemhalted by Palak Mathur

तन्हाई

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    चारों और के अंधियारे में

    जब मैं छत पर बैठा था अकेला,

    दूर तक निहारने कि कोशिश कर रहा था ,

    तभी मुझे लगा मेरी आत्मा मुझसे अलग हो

    मेरे पास आ बैठी है ,

    मेरी तन्हाई में अपने को शामिल करने ,

    और शायद कुछ कहने !

    जैसे ही वह हुई कुछ कहने ,

    कहीं दूर किसी ने एक दीप जला दिया ,

    यह सोच कि सुबह के सूरज कि

    पहली किरण आ पड़ी है ,

    वह मेरे भीतर समां गयी ,

    मुझको वहीं छोड़ ,

    मेरी तन्हाई में !!
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