Tanhai
27 Sep 2007 Share on:
तन्हाई |
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चारों और के अंधियारे में
जब मैं छत पर बैठा था अकेला, दूर तक निहारने कि कोशिश कर रहा था , तभी मुझे लगा मेरी आत्मा मुझसे अलग हो मेरे पास आ बैठी है , मेरी तन्हाई में अपने को शामिल करने , और शायद कुछ कहने !! |
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जैसे ही वह हुई कुछ कहने ,
कहीं दूर किसी ने एक दीप जला दिया , यह सोच कि सुबह के सूरज कि पहली किरण आ पड़ी है , वह मेरे भीतर समां गयी , मुझको वहीं छोड़ , मेरी तन्हाई में !! |