सिर्फ़ है तेरा आसरा
01 Jul 2008 Share on:
कैसा यह आलम है, बेबस हूँ मैं,
न वोह कुछ बोलते हैं, न दिल कुछ सुनता है,
पता नहीं यह हवाएं यूँ क्यूँ बह रही हैं,
आवाजें तो बहुत हैं, पर बेचैनीयां बड़ रही है!
कौन कहता है की बिना कहे लोग बात समझ जाते हैं,
जो अपने होते हैं, वोह हर राज़ ख़ुद जान जातें हैं,
मैं तो बोलता रहता हूँ, कोई समझ नहीं पाता,
जो पास होते हैं वोह भी दूर हो जाते हैं!!
अब तू ही बता मेरी जिंदगी के मालिक,
क्या करुँ ऐसा की तू खुश हो जाए,
आवाज़ दे रहा है मेरे जिस्म का हर कतरा,
कुछ तो बोल, बस सिर्फ़ है तेरा आसरा!!!